हम कौन हैं, कहाँ हैं, किस के लिए हैं और जाना कहाँ है, यह जानने का प्रयत्न करें। साथ ही, यह भी कि राजनीति और सरकार मूलतः समाज की सेवा और रचना के लिए है अथवा राजनीति में लगे सभी लोगों की भोग-वृत्ति के लिए हैं। हम में से सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सभी के बारे में जानते हैं, परन्तु अर्थ, पद या झूठी प्रतिष्ठा के लिए विवश होकर इस चक्रव्यूह में फँसे हुए हैं। यही विवशता कभी महाभारत का कारण बनी थी। आज जाति और सम्प्रदाय से भी ज़्यादा विनाशकारी रूप राजनैतिक जातीयता और साम्प्रदायिकता ने ग्रहण कर लिया है। यद्यपि अंग्रेज़ों को हमने अपना शासक मान लिया था, परन्तु उनके साथ बैठकर खान-पान और चरित्र को स्वीकार नहीं किया। भारत की जाति-प्रथा के कारण अंत्यजों में भंगी और डोम को सबसे निम्न श्रेणी में रखकर गाँव के बाहर रखा गया। सार्वजनिक तालाब और कुएँ से पानी लेने में भी रोक लगाकर रखा। उन्हें मंदिर में जाने से भी वंचित किया गया। फिर भी, धन्य हैं वे लोग जिन्होंने इस अपमान और प्रताड़ना को सहते हुए भी ख़ुद को हिंदू कहना स्वीकार किया और मुग़लों और अंग्रेज़ों के सामाजिक समता के प्रलोभन के बावजूद धर्म...
मूलतया कनपुरिया - बेलौस, बिंदास अन्दाज़ के साथ एक खरी और सच्ची बात का अड्डा…