मान लीजिए कि आप चाय का कप हाथ में लिए खड़े हैं और कोई व्यक्ति आपको धक्का दे देता है । तो क्या होता है ? आपके कप से चाय छलक जाती है। अगर आप से पूछा जाए कि आप के कप से चाय क्यों छलकी? तो आप का उत्तर होगा "क्योंकि मुझे अमुक व्यक्ति (फलां) ने मुझे धक्का दिया." मेरे ख़याल से आपका उत्तर गलत है। सही उत्तर ये है कि आपके कप में चाय थी इसलिए छलकी। आप के कप से वही छलकेगा, जो उसमें है। इसी तरह, जब भी ज़िंदगी में हमें धक्के लगते हैं लोगों के व्यवहार से, तो उस समय हमारी वास्तविकता यानी अन्दर की सच्चाई ही छलकती है। आप का सच उस समय तक सामने नहीं आता, जब तक आपको धक्का न लगे... तो देखना ये है कि जब आपको धक्का लगा तो क्या छलका ? धैर्य, मौन, कृतज्ञता, स्वाभिमान, निश्चिंतता, मान वता, गरिमा। या क्रोध, कड़वाहट, पागलपन, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा इत्यादि. निर्णय हमारे वश में है। चुन लीजिए। सोशल मीडिया हो या रोज़मर्रा की ज़िन्दगी- हमारे अंदर का भाव परिवर्तित नहीं हो रहा है और इससे बड़ा सच ये है की परिवर्तित हो भी नहीं सकता है । मन किसी भी घटना पर प्रतिक्रिया दे...
मूलतया कनपुरिया - बेलौस, बिंदास अन्दाज़ के साथ एक खरी और सच्ची बात का अड्डा…