... . . जमाने में दोस्ती-यारी के हजार रंग और बहाने होते हैं । हमने पौराणिक युग में निषादराज गुह्य, हनुमान, सुग्रीव, विभीषण, सुदामा, कर्ण और अश्वत्थामा जैसे दोस्त देखे हैं, जिन्होंने अपने मित्र के लिए सर्वस्व न्योछावर करने में कतई हिचक नहीं दिखाई। इसी प्रकार प्रत्येक युग और काल में दोस्ती की भावना और उच्चादर्शों को निभाने की परंपरा रही है। भारतीय हिन्दी फिल्मों में दोस्ती के कई उदाहरण स्थापित किये गए हैं। श्याम-श्वेत फिल्मों के दौर में “दोस्ती ” का कथानक ही इसी भावना पर आधारित था, जिसने कम बजट में अच्छा मुनाफ़ा कमाकर सफलता स्थापित की थी। शोले, याराना, काला-पत्थर, दोस्ताना, तेज़ाब, 3 इडियट, मुन्ना भाई एम बी बी एस, फुकरे, धमाल, छिछोरे आदि दोस्ती की भावना पर आधारित नवीन कथानकों पर बनी ऐसी फ़िल्में हैं, जो समय-समय पर गुदगुदाती और प्रतिमान स्थापित करती रही हैं। अब युग बदल रहा है। OTT प्लेटफार्म और वेब-सीरिज का युग आ गया है। कोरोना काल में इसे बढ़ावा मिला है। हाल में, एक वेब-सीरीज “आश्रम” के सीजन-3 का लांच हुआ। बॉबी देओल ने इसमें मुख्य किरदार निभाया है, जिसमें उसके दोस्त ...
मूलतया कनपुरिया - बेलौस, बिंदास अन्दाज़ के साथ एक खरी और सच्ची बात का अड्डा…