समयकाल - बीसवी सदी में नब्बे का दशक. स्थान - उत्तरप्रदेश की राजधानी, लखनऊ. प्रसंग - त्रेतायुग वाले प्रभु राम का अपने बंधु-बांधवों सहित आजाद भारत में पुनर्जन्म हो चुका है. परन्तु उनके राज्य अवध और मुगलकालीन आगरा को मिलाकर नया राज्य उत्तरप्रदेश बन चुका है. राम को इस राज्य की सत्ता सम्हालनी है यानी मुख्यमंत्री पद हेतु कल बहुमत साबित करना है. ............पार्टी कार्यालय के एक बड़े हाल भूमि में बिछी दरी में समाजवादी या अफगान राजशाही के अनुसार प्रभु राम, अपने प्रमुख सलाहकार जाम्बवंत, हनुमान, सुग्रीव, अंगद, नल-नील, भरत, शत्रुघ्न, लव, कुश और तमाम बंधू-बांधवों के साथ गहन चिंतनीय मुद्रा में बैठे हैं..... लम्बी चुप्पी तोड़ते हुए जाम्बवंत बोले- "सब तरफ से गिन लिया है, लेकिन बहुमत का इंतजाम नहीं हो पा रहा है...... कुछेक विधायकों की कमी पड़ जा रही है...." प्रभु राम लम्बी सांस लेते हैं......रामादल में गहरा सन्नाटा पसरा है..... तभी प्रभु राम की जय हो कहकर हनुमान का प्रवेश होता है..... उनके चेहरे का हर्ष और जोश देखकर सबके चेहरों में चैतन्यता आ जाती है. प्रभु राम ने हर्ष का कारण पूछ...
मूलतया कनपुरिया - बेलौस, बिंदास अन्दाज़ के साथ एक खरी और सच्ची बात का अड्डा…