................कलियुग में जम्बूद्वीप के भारतखंड में उत्तरप्रदेश नाम का एक राज्य था. वंशवाद के विरोध में एक ही परिवार की प्रमुखता वाली समाजवादी सरकार का शासन था. कलियुग के जिस काल की यह कहानी है, उस काल में कमजोर राजा के मजबूत सलाहकारों का युग था. "बाबू" टाइप के अधिकारी ही असली राजा थे, जो साहब कहलाते थे. उस राज्य में एक बंगाली प्रजाति का एक बादशाह जैसी शानोशौकत से जीने का शौकीन "बाबू" यानी साहब था. सत्ता की ताकत में उसे आदमी को पहचानने में दिक्कत आने लगी थी. उसने अपने घर और दफ्तर में आने-जाने वालों की फितरत को पहचानने के लिए एक "तोता" पाला. "तोता" विशिष्ट गुण वाला था. वो हर आने-जाने वाले को देखकर उसकी सबसे बड़ी खासियत के बारे में चिल्ला-चिल्लाकर साहब को सचेत कर देता था. इससे उन्हें जागरूक रहने में मदद मिलती थी. इस खामख्याली में उन्होंने आने-जाने वालों से रोत-टोक का बैरियर हटा दिया. लोग आते और तोते से अपना सर्टिफिकेट जारी करवा लेते. इस व्यवस्था में एक दिन एक समस्या खड़ी हो गयी. साहब के लिए चाँद-तारे और सारे लाने की व्यवस्था करने वाले ...
मूलतया कनपुरिया - बेलौस, बिंदास अन्दाज़ के साथ एक खरी और सच्ची बात का अड्डा…