संसद में चिल्ल-पों Posted On May 11, 2012 Tags : . A A A -अरविन्द त्रिपाठी आज एक बार फिर संसद हंगामे के भेंट चढ गयी. इसकी वजह संसद के अंदर मल-मूत्र की बदबू ना थी, वरन दलित-सम्मान और दलित-वोट-बैंक पर अधिकाधिक काबिज होने के लिए राजनेताओं की ऎसी गतिविधि थी जिसे विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकेल लगाने का प्रारम्भ है. वजह एक “कार्टून” है. देश को धार्मिक आधार पर साफ़-साफ़ बाँट चुके राजनेताओं ने समाज को जातीय आधार पर खेमेबंद करने के लिए राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है. उक्त हंगामाखेज कार्टून ना तो मोहम्मद साहब पर था और ना ही हिन्दू देवी-देवताओं का था. पांच साल पहले छपी कक्षा-11 में नागरिक शास्त्र विषय की पुस्तक में छपे इस कार्टून को प्रकाशित किया गया था. जिसमें आजादी के बाद संविधान के निर्माण में ज्यादा समय लगने से नाराज नेहरू जी को हाथ में हंटर लिए और घोंघे पर सवार बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर को दिखाया गया है. बाबा साहब पहली बार निशाने पर नहीं थे. अरुण शौरी की “वर्शिपिंग फ़ाल्स गाड” पुस्तक के प्रकाशित होने के बाद भी दलित सम्मान के प्रश्न पर देश-व्य...
मूलतया कनपुरिया - बेलौस, बिंदास अन्दाज़ के साथ एक खरी और सच्ची बात का अड्डा…