......लो खुल गयी....मुट्ठी !! अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले सोलह महीने के जन-लोकपाल की मांग के आंदोलन के कई चरण देश ने देखे हैं. परन्तु पिछले साल के रामलीला मैदान के हाउसफुल और मुम्बई के एम.सी.आर.डी. ग्राउंड के सुपर फ्लॉप से होते हुए जंतर-मंतर मैदान तक टीम अन्ना के आंदोलन के तरीके में कोई बदलाव नहीं आया. आज़ादी के आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ गांधी जी का सफल तरीका, “अनशन” अन्ना हजारे के नेतृत्व में चली भ्रष्टाचार विरोधी इस मुहिम को ताकत देने का हथियार बन कर उभरा. देश के राजनेताओं के तमाम आरोपों और आक्षेपों को सहते हुए इस टीम ने अपने लक्ष्य यानी जन-लोकपाल कानून की मांग के प्रति समर्पण तो जाहिर कर दिया है पर उसे लागू करवा पाने के लिए अपनाया गया रास्ता अभी भी बहुत धुंधला और पथरीला है. टीम अन्ना के द्वारा ‘व्यवस्था परिवर्तन’ का नारा लगाते-लगाते ‘सत्ता-परिवर्तन’ और सत्ता को अपने हाथ में लेने का निर्णय एक अंधी सुरंग में प्रवेश कर जाने जैसा आभास देता है, जहां से लक्ष्य के और दूर होते जाने की संभावना बढ़ती जाती है. सरकार और दूसरे राजनीतिक दल इस पूरी टीम को इसी चुन...
मूलतया कनपुरिया - बेलौस, बिंदास अन्दाज़ के साथ एक खरी और सच्ची बात का अड्डा…