विगत दिनों अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस था. आज माँ दुर्गा के पावन शारदीय नवरात्रि का प्रथम दिन है.उस दिन से आज तक मेरे मन में लगातार उथल-पुथल जारी है. क्या आज के समाज में स्त्री का दोष ही उसका स्त्री होना है ? माँ और बेटी के पर्व के अवसरों के परिप्रेक्ष्य में कहूँगा कि आज का समाज बेटी और माँ दोनों में से किसी का सम्मान करना नहीं सीख पाया है. चाहे वो अपना देश हो या फिर विदेश.माँ दुर्गा को ये सम्मान देवताओं ने तभी दिया जब उन्होंने अपनी शक्ति को सिद्ध किया. जब हथियार उठाये.राक्षसों का नाश किया.मधु-कैटभ, दुर्गम , रक्त-बीज और शुम्भ-निशुम्भ सहित तमामों को मौत के घात उतार दिया. क्या आज की नारी के समक्ष वैसी ही स्थिति नहीं आ रही है कि वो भी हथियार उठाकर अपनी अस्मिता की रक्षा करे ! यदि हाँ, तो ये सभ्य कहलाने वाले समाज के लिए शर्मनाक है कि हम अपनी बेटियों , चाहे वो अविवाहिताये हों या विवाहिताएं, उनका सम्मान और गौरव नहीं बचा पा रहे हैं. बलात्कार की घटनाओं में आयी तीव्रता...
मूलतया कनपुरिया - बेलौस, बिंदास अन्दाज़ के साथ एक खरी और सच्ची बात का अड्डा…