फेसबुक बनी फेकबुक भाइयों और बहनों, भारतीयों की युवाशक्ति के समय को बर्बाद करने का गोरों का खेल जारी है. क्रिकेट, फ़ुटबाल,बालीबाल, टेनिस,टेबिल टेनिस जैसे खेल वे हमारे देश में लाये. हमारे देश के इतिहास में इन और ऐसे बहुत से खेलों के बारे में कोई आख्यान या विवरण नहीं मिलता है. अभी क्रिकेट का आई.पी.एल. चल रहा है. हज़ारों करोड़ रुपया विज्ञापन और विभिन्न मदों में बहाया गया. देश का सैकड़ों घंटे का बहुमूल्य समय बर्बाद हुआ. बिजली सहित तमाम संसाधन जो देश के विकास में व्यय होने चाहिए व्यर्थ के शौक में बेकार हुए. मैच-फिक्सिंग और सट्टा से ये मैच ओत-प्रोत रहे. अब एनी खेलों को भी इसी तरह से आगे लाया जाएगा. अभी भारतीय जन-मानस राष्ट्र-मंडल खेलों में हुए घपले-घोटाले को भूला नहीं है.उसके नायक जेल में हैं. क्रिकेट के राष्ट्रनायकों का तिलिस्म भी आम जनता में आना बाकी है. वास्तव में हमारे देश के लोगों के पास खेलों के लिए कभी समय ही नहीं रहा. हमारे देश के संस्कार में श्रम मूलक सभ्यता का सर्व-मान्य होना इसका एक ख़ास कारण रहा है. ब्रिटिश काल में ही भारतीय समाज ने सिनेमा के बारे में जाना. शुरुआत ...
मूलतया कनपुरिया - बेलौस, बिंदास अन्दाज़ के साथ एक खरी और सच्ची बात का अड्डा…